क्या आपको स्मरण है की शब्द भी एक
शक्ति है और उसकी ऊर्जा को बचाना भी उतना ही जरूरी है। अक्सर यह देखा गया है कि
अधिक एवं व्यर्थ बोलने वालों को कोई भी सुनना पसंद नहीं करता एवं बातचीत में उनकी
वक्तव्य की गरिमा भी कोई नहीं रखता। उनकी वाणी का वास्तव में कोई मोल नहीं होता।
दूसरी ओर जो व्यक्ति कम किंतु सधे हुए शब्दों में अपनी बात को रखता है उसकी बात का
ना केवल मूल्य होता है बल्कि सभी उसका समुचित सम्मान भी करते हैं।
कहने का तात्पर्य यह है कि अधिक बोलने या ऊंचा
बोलने से आपकी बात की गरिमा एवं गहराई कम ही होती है ना की बढ़ती है अतः कम से कम
शब्दों में किंतु तार्किक रूप से जब हम अपनी बात को प्रस्तुत करते हैं तो उसका वजन
बढ़ जाता है। तो आगे से हमें अपनी बात को सधे हुए शब्दों में रखने के लिए सबसे पहले
अपनी शब्दावली को सुधारना होगा।