सम्मान उस निवेश की तरह है जो हमें वैसे ही वापस मिलता है जैसे हमने दूसरों को दिया था। जितना सम्मान अथवा अपमान हम दूसरों का करते हैं वह सारे का सारा ब्याज सहित हमें वापस मिल जाता है।यह वह ऊर्जा है जो देने पर कई गुना होकर हम तक वापस आती है। बिना दूसरों को आदर अथवा सम्मान दिए हम उनके हृदय में भी स्थान नहीं बना सकते।
बहुत से ऊंचाइयों पर पहुंचे हुए बड़े व्यक्ति अहंकारवश अपने नीचे काम करने वाले लोगों को तुच्छ समझते हैं एवं अहंकार के वश होकर उन्हें कभी सम्मान नहीं देते। किंतु वह भूल जाते हैं कि जो ऊर्जा उन्होंने उन्हें स्थानांतरित की वही समय के साथ उसी रूप में वापस उन तक आती है। यह विनिमय प्रकृति का नियम है। तो अगर सबके हृदय में विराजना है तो सम्मान लेने के पहले देना सीखना होगा।