कहावत है परिश्रमी पर लक्ष्मी सदैव प्रसन्न
रहती हैं। यह कहावत उन पर बिल्कुल सटीक बैठती है जो अपने कर्मों से अपने भाग्य की
लकीरों को बदल देते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है अपने आप पर और अपने कर्मों
पर। जो जीवन भर दूसरों की छाया में चुप कर रहना चाहते हैं, दूसरों के
आश्रय में जीवन बिताना चाहते हैं वह कभी भी स्वयं की परछाई नहीं देख पाते।
स्वयं की मेहनत से पसीना बहा कर पाया
हुआ धन एवं साधन अद्भुत संतोष देते हैं लेकिन उसके लिए धूप में भी पकना पड़ता है, संघर्षों का
सामना करना होता है। मेहनत की रोटी में जो सुख है वह दूसरों से प्राप्त धन और सुंदर
व्यंजनों में भी नहीं है। मेहनत से कमाने में धूप की चुभन है, कभी दर्द भी है
किंतु अंत में सुखद संतोष एवं शांति है।