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गुरुवार, 19 नवंबर 2020

परिश्रम

कहावत है परिश्रमी पर लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं। यह कहावत उन पर बिल्कुल सटीक बैठती है जो अपने कर्मों से अपने भाग्य की लकीरों को बदल देते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है अपने आप पर और अपने कर्मों पर। जो जीवन भर दूसरों की छाया में चुप कर रहना चाहते हैं, दूसरों के आश्रय में जीवन बिताना चाहते हैं वह कभी भी स्वयं की परछाई नहीं देख पाते।

स्वयं की मेहनत से पसीना बहा कर पाया हुआ धन एवं साधन अद्भुत संतोष देते हैं लेकिन उसके लिए धूप में भी पकना पड़ता है, संघर्षों का सामना करना होता है। मेहनत की रोटी में जो सुख है वह दूसरों से प्राप्त धन और सुंदर व्यंजनों में भी नहीं है। मेहनत से कमाने में धूप की चुभन है, कभी दर्द भी है किंतु अंत में सुखद संतोष एवं शांति है।


 

रविवार, 15 नवंबर 2020

शांति का प्रकाश

जब हम किसी देव पुरुष या किसी महापुरुष के व्यक्तित्व को देखते हैं तो सबसे पहले जो दिखता है वह उनके चेहरे पर छाई हुई अनोखी सरलता एवं शांति। उनके चारों ओर फैला हुआ प्रकाश स्वत: ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। उनके व्यक्तित्व का सबसे सुंदर पहलू अगर कोई होता है तो वह है उनके चेहरे पर फैली हुई धैर्य मिश्रित अनोखी शांति।

यही वह ऊर्जा है जो उन्हें सतत प्रकाशमान करती है एवं अनेकों को उनकी ओर एक चुंबक की तरह खींचती भी है। यह ऊर्जा यूं ही नहीं आती अपितु यह अंदर की तप साधना का ही परिणाम है। अतः जिसके अंदर शांति है उसके लिए सारा जग ही सुंदर है।


 

स्व संवाद

अधिकांश मनोवैज्ञानिक समस्याओं की जड़ हमारे मन के अंदर होती है। जब भी किसी मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति को देखते हैं तो यहां यह पाते हैं कि उसकी समस्याओं की जड़ तो उसके अंदर ही है। आज का युग मानसिक समस्याओं का युग है और आज के युग की सबसे बड़ी बीमारी है अवसाद, तनाव क्योंकि आज इंसान अकेला है एवं साधन संपन्न होते हुए भी अपने अहम के कारण एक घर में रहते हुए भी अपनों से कटा हुआ है।

 समस्याओं का प्रकार इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमारा स्वयं से संवाद कैसा है। आज अगर कुछ बिगड़ा हुआ है तो वह हमारा स्वयं से संवाद ही है। हम स्वयं से किस भाषा में बात करते हैं उससे हमारेे पूरेे व्यक्तित्व का निर्माण होता है और उसी से हमारे रिश्तो का भी बनना बिगड़ना होता है। अगर एक सकारात्मक पहल करनी है तो सबसे पहले रोज स्वयं से सकारात्मक संवाद करने की आदत डालनी होगी।


स्वयं से रिश्ता


आज रिश्तो की नींव हिली हुई है, इंसान अकेला है। संयुक्त परिवार टूट गए हैं और जो एकल परिवार भी हैं उनमें भी सामंजस्य नहीं है। परिवार के सदस्यों में प्रेम की भावना कम होती जा रही है क्योंकि कहीं ना कहीं शुरुआत ही गलत है। अगर ध्यान से विश्लेषण किया जाए तो यह देखने में आता है कि वास्तव में इंसान स्वयं से ही परेशान है। उसका स्वयं से ही रिश्ता अच्छा नहीं है इसलिए वह दूसरों से भी एक स्वस्थ और गहरा रिश्ता बना पाने में सक्षम नहीं है इसलिए यह मान सकते हैं कि शुरुआत स्वयं से ही होती है।

स्वयं को समझना रिश्तो को निभाने की पहली सीढ़ी है। देखने में आता है कि जो स्वयं के साथ एक सुंदर रिश्ता रखते हैं हमें दूसरों के साथ भी बड़ी सरलता से जुड़ जाते हैं। तो पहले खुद से दोस्ती कीजिए फिर देखिए रिश्ते कैसे सुंदर बनते हैं।

शनिवार, 7 नवंबर 2020

संवाद का जादू

संवाद जीवन में जादू करने वाला एक सशक्त शब्द है। हर व्यक्ति जानता है कि जीवन में इसका क्या महत्व है। नौकरी में सफलता से लेकर सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में हर जगह इसका बहुत ऊंचा स्थान है किंतु हर कोई इस कला को नहीं जानता। बात चाहे सामाजिक संबंधों की हो, अपने अधीनस्थों से संबंध की हो या फिर अपने प्रियजनों से संबंधों की हो, हर जगह एक मजबूत संवाद मजबूत डोर का कार्य करता है जो आपस में व्यक्तियों को बांधे रखता है।

संवाद ऐसा हो जिसमें सार तो समाया हुआ ही हो किंतु मधुरता के साथ-साथ स्पष्टता भी हो। यदि स्पष्ट एवं सुंदर संवाद की कला आ गई तो जीवन स्वर्ग सम हो जाता है । हर रिश्ते की पहली नीव है आत्मिक संवाद मतलब दिल से निकले वह सच्चे शब्द जो ना केवल आप को स्पर्श करें किंतु कम शब्दों में सीख भी दे जाएं।


 

सफलता की उड़ान

सफलता आज के समय में कौन नहीं चाहता। आज हर कोई नाम शोहरत और और धन चाहता है। इस सफलता के लिए हर व्यक्ति अपनी ओर से पूरा प्रयास करता है हर तरह की कलाएं और गुण सीखता है, अपने व्यक्तित्व के ऊपर कार्य करता है किंतु जब उसे सफलता मिल जाती है तो वह अपनी जमीन और अपनी मिट्टी से मुंह मोड़ लेता है। वह अपने संघर्ष को तो याद रखता है लेकिन अपने से नीचे जो लोग हैं उनका दमन शुरू कर देता है।

सफलता के नशे में वह यह भूल जाता है कि पक्षी चाहे कितनी भी ऊंची उड़ान क्यों ना भरे अंततः उसे जमीन पर पांव रखना ही है। अपनी जड़ों को छोड़कर कोई भी जीवित नहीं रह सकता। कहीं ना कहीं उसके अंदर अधूरापन रह जाता है इसलिए सदैव संतुलित एवं अनुशासित रहे।


 

भाग्य निर्माण

शब्दों की शक्ति अपार है | विचारों से शब्दों का निर्माण होता है एवं हमारे शब्द ही हमारे कर्मों में उतरकर हमारा भाग्य बनाते हैं। किसी से बात करते समय कैसे शब्द चुनना है यह बहुत समझदारी का विषय है। कई बार केवल शब्दों के प्रयोग से बनती हुई बात बिगड़ जाती है या बिगड़ी हुई बात बन जाती है। साथ ही साथ शब्दों की भी अपनी शक्ति होती है, अपनी तरंगे होती हैं।

शब्दों के प्रयोग के समय केवल वाणी का ही उपयोग नहीं कर रहा होता है किंतु भावों का भी समावेश करना होता है। कई बार वह भाव बिना कहे ही गजब का प्रभाव छोडते हैं। कहते भी हैं दिल से कही गई बात सदैव सफल होती है इसलिए शब्दों का चुनाव सोचकर करें।


 

ख़ुशी की खुराक

आज का समय जैसे बड़ा ही निराशाजनक समय है जब लोग अपने घरों में बंद है एवं एक दूसरे से ना तो संपर्क कर पा रहे हैं और ना ही एक साधारण जीवन जी पा...