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मंगलवार, 29 दिसंबर 2020

कर्म फल

यह विचार पढ़ते समय आपको लगता होगा कि यह कैसा विचार है ? एक सकारात्मक विचार तो हमेशा यह कहता है कि हमारा जीवन तो हमारे हाथों में होता है, उसकी लगाम तो हमारे हाथों में ही हैं फिर जीवन की चालें पहले से निश्चित कैसे हुई ? वास्तव में यह विचार हमारे कर्मों की प्रतिछाया को दिखाने वाला विचार है। हम जैसे कर्म करते हैं हमारा भविष्य तो पहले ही निश्चित हो जाता है।

जो कुछ भी हम पा रहे होते हैं वह और कुछ नहीं जो हमने दिया उसी का फल है और जो हम कर रहे हैं वह हम भविष्य में पाएंगे चाहे वह प्रेम हो, सेवा हो या कृतज्ञता हो। तो हमारे कर्मों का परिणाम ही हमारे सामने आता है । अतः जीवन की चाले तो तभी निश्चित हो जाती हैं जब हम अच्छे बुरे कर्मों को करते हैं।


 

खुद को निखारे

आज की भौतिक दुनिया में अधिकांश लोग यह समझते हैं कि दिखावा कर कर वह अपने मूल व्यवहार को, अपने मूल स्वभाव को छुपा सकते हैं। वह यह नहीं जानते कि हमारा मूल स्वभाव किसी छेद से निकलती हुई प्रकाश की तरंगों जैसा है। हमारे व्यवहार में भी कहीं ना कहीं ऐसे छोटे-छोटे छेद होते हैं जो ना चाहते हुए भी सामने दिख ही जाते हैं। अगर अंदर कचरा हो तो बाहर भी उसका प्रतिरूप ही दिखेगा, अगर अंदर अशांति हो तो चेहरे की भाव भंगिमा भी अपने आप ही ऐसी हो जाती हैं।

चाहे उन्हें कितना भी श्रृंगार करके छुपाया जाए किंतु वह भाव नहीं छुपते। अतः सबसे पहले अगर किसी पर कार्य करना है तो वह स्वयं हम ही हैं। जब तक हमारे अंतरतम को शांति, प्रेम और सद्गुणों से नहीं सजाया जाएगा, हमारी परछाई भी हमारी सच्चाई को बयां करेगी।


 

सुंदर विचार

 

संकल्प यानी हमारे विचार और उन से निकली हुई तरंगे। हम सभी विचारों की शक्ति से वाकिफ है कि कैसे एक सुंदर विचार एक सुंदर कर्म में बदलता है और अनेकों को लाभ पहुंचाता है। दुनिया में जहां कहीं भी कुछ भी महान एवं अच्छा होता है उसके  पीछे एक शक्तिशाली एवं सुंदर विचार का ही हाथ होता है। सबसे पहले वह विचार मानसिक जगत में प्रकट होता है और फिर वह भौतिक जगत में रूप लेता है। कर्मों में उतर कर वह और भी सुंदर बन जाता है एवं हजारों लाखों तक पहुंचकर उसका प्रकाश और भी तीव्र हो जाता है।

सबसे अच्छी बात जो सुंदर संकल्प के बारे में है वह यह है कि वह हमारी उस शक्ति को व्यर्थ होने से बचाता है जो दिन रात गलत विचारों में खपकर कुछ अच्छा और सार्थक करने से रोकती है। अतः सबसे पहले अपने संकल्पों पर नजर डालें यह आपके लिए वरदान भी हो सकते हैं और अभिशाप भी।


सोमवार, 23 नवंबर 2020

संपन्नता

संपन्नता- एक अद्भुत शब्द जो हर इंसान की इच्छाओं में से एक है। हर इंसान अपने जीवन में दिन रात मेहनत करके सारे साधनों को इकट्ठा करना चाहता है एवं तमाम शानो शौकत इकट्ठा करना चाहता है। वास्तव में यह बहुत कम लोगों को ज्ञात है की संपन्नता बाहरी नहीं अंदरूनी होती है। संपन्नता बाहर तो बाद में दिखाई देती है किंतु यह वास्तव में आंतरिक है, यह आपके विचारों में बसती है।

एक पुरानी कहावत है कि जेब में पांच रुपये भी हो तो शान से कहो- काफी है। वास्तव में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास सब कुछ होते हुए भी वह अंदर से रिक्त महसूस करते हैं और बहुत से ऐसे भी हैं जो कम होने के बाद भी अंदर से मालामाल है। अतः संपन्नता केवल धन से ही संबंधित नहीं है वह रिश्तो में भी है, साधनों में भी है और सबसे बढ़कर आपकी आंतरिक संतुष्टि में है। उस पर ध्यान केंद्रित करें, वही सच्ची संपन्नता है।


 

परिवार

परिवार- यह शब्द हम सब के लिए कितना महत्वपूर्ण है, कितना दिल के करीब है हम सब जानते हैं। उससे भी बढ़कर आप किसी अनाथ से पूछे कि परिवार क्या होता है तो जैसे या प्रश्न उसके लिए जिंदगी जैसा ही महत्वपूर्ण होगा। आज परिवार टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं । इंसानों की संपन्नता तो बढ़ रही है लेकिन वह अंदर से खाली होता जा रहा है क्योंकि वास्तव में अंदर से भरा पूरा महसूस करने के लिए, साधनों की नहीं एक साथ की, अपनों की जरूरत होती है।

 आज के समय में दिखावा बढ़ता जा रहा है और अपने हितैषी पीछे छूटते जा रहे हैं। परिवार समाज का वह महत्वपूर्ण अंग है, वह धुरी है जिसके आसपास समाज की रचना होती है एवं उसमें मानवता सांस लेती है। परिवार को बचाना है तो सबसे पहले व्यक्ति से शुरुआत करनी होगी और वह पहला व्यक्ति खुद आप ही क्यों ना हो ?


 

स्व प्रेरणा

हर व्यक्ति के जीवन में एक प्रेरणा होती है - ऐसा कोई व्यक्ति जो आपके करीब हो या फिर आपके लिए एक आदर्श हो। यह प्रेरणा उस व्यक्ति को लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। पर क्या वास्तव में आपकी प्रेरणा बाहरी है? बहुत ध्यान से अगर आप इस प्रश्न के ऊपर सोचे और अवलोकन करें तो पाएंगे कि आप की प्रेरणा तो स्वयं आप ही हैं। पर कैसे?

 वह ऐसे कि कितने भी बाहरी प्रयत्न कर लिए जाएं आपको जगाने के लेकिन जिस क्षण आप उसे स्वीकार करते हैं एवं आगे बढ़ने का निर्णय लेते हैं उसी दिन आप उस प्रेरणा को ग्रहण करते हैं। तो वास्तव में आप स्व प्रेरित ही हुए ना। 


 

शनिवार, 21 नवंबर 2020

ज्ञान एक खज़ाना

हर ज्ञानी का पतन एक दिन उसके अहंकार के कारण ही हुआ है। इतिहास गवाह है कि जिसने अपने ज्ञान को संभाल कर नहीं रखा, उसे समय के साथ तराशा नहीं एवं उसके महत्व को नहीं जाना, उसे समय ने भुला दिया। जितने महान व्यक्तित्व इस दुनिया में हुए हैं उन सभी ने आजीवन एक विद्यार्थी बनकर अपने ज्ञान को नई ऊंचाई दी है।

ज्ञान की तलवार तब और भी धारदार एवं शक्तिशाली हो जाती है जब उसमें आजमाने और चुनौतियों का सामना करने का दम भर जाता है। अतः अपने आप को निरंतर चुनौती देते रहने से आपका ज्ञान कमल की तरह खिलकर चारों और अपना सौंदर्य बिखेरता है, इसे सदैव याद रखें।


 

समाधान

आज हर किसी के पास समस्याओं का भंडार है। ऐसा नहीं है कि पुराने समय में मानव सभ्यता के सामने समस्याएं नहीं होती थी किंतु आज समस्या के प्रति मानव का जो दृष्टिकोण है वह पहले नहीं होता था। अपनी आत्मिक शक्ति के बल पर मनुष्य में अनेकों समस्याओं का सामना किया है यह सच है। वास्तव में समस्या इतनी बड़ी नहीं होती जितना कि हमारा उसके प्रति दृष्टिकोण और उसके प्रति प्रतिक्रिया।

व्यक्तिगत स्तर पर बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं इसीलिए होती है क्योंकि किसी विशेष क्षण में मनुष्य समस्या से इतना व्याकुल हो जाता है कि वह उसपर ठंडे दिमाग से विचार कर उसके समाधान के प्रति सोच ही नहीं पाता। अधिकांश समस्याएं तभी हल हो सकती हैं जब हम उनके प्रति अपनी प्रतिक्रिया को बदलें। हम समस्या पर विचार करें ना कि उसके प्रति प्रतिक्रिया दें।


 

लगन की महिमा



 

लगन मतलब किसी कार्य को करने का दृढ़ निश्चय एवं उसमें अपने आत्मबल का स्पर्श। यह बात किसी को भी बताने की जरूरत नहीं कि जो भी महान सफल व्यक्ति इस दुनिया में हुए हैं उनमें लगन का अतिशय भंडार था। उनके  जीवन में मुसीबतों के अनेक पहाड़ टूटे, अनेक विषम परिस्थितियों का उन्हें सामना करना पड़ा किंतु वह अपने लक्ष्य से नहीं डिगे।

 हम सब यह जानते हैं किंतु कहीं ना कहीं हममें आत्मबल की कमी होती है जिससे हम अपने लक्ष्यों को छोड़ देते हैं या रास्ता ही बदल देते हैं पर जिसमें लगन हो वह हर तरह की मुसीबतों का सामना करने के बाद भी अपने लक्ष्य को नहीं भूलता और उसे पाकर ही रहता है। सच ही है सच्ची लगन मुसीबतों को देखती ही नहीं, केवल अपने लक्ष्य को देखती है।


गुरुवार, 19 नवंबर 2020

कुछ करने की प्रेरणा

अक्सर असफल होने पर अधिकांश व्यक्ति सही अवसरों के नहीं होने या उचित सुविधाओं के नहीं होने को कारणों में गिनाते हैं। यह कारण बहुत हद तक सही भी होते हैं किंतु देखा गया है कि विषम से विषम परिस्थितियों में विजय प्राप्त करने वाले अवसरों की प्रतीक्षा नहीं करते बल्कि अवसरों को उत्पन्न करते हैं। अपनी दक्षता के बल पर वे हर परिस्थिति को हराते हुए विजय पथ पर अग्रसर होते हैं। तो इससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि केवल अवसर का ना होना कोई कारण नहीं वास्तव में हमारे अंदर प्रेरणा एवं आत्म बल की कमी ही असफलता के लिए जिम्मेदार है।

कई बार एक व्यक्ति बड़े जोश से बड़े उत्साह से कोई कार्य शुरू करता है किंतु अक्सर उसी बीच में अधूरा छोड़ देता है। यह हम में से अधिकांश लोगों की समस्या है। इसका मुख्य कारण है सतत प्रेरणा का ना होना एवं आत्म बल की कमी होना। अगर सही प्रेरणा और कुछ पाने की आग निरंतर बनी रहे तो सफलता निश्चित है।


 

आत्ममंथन

कहावत है आईना कभी झूठ नहीं बोलता और इसीलिए अधिकांश व्यक्ति स्वयं का स्वयं से सामना करने में झिझकते हैं,डरते हैं। वास्तव में दुनिया में सबसे कठिन कार्य खुद का सामना करना ही है। जो स्वयं का सामना कर सकता है, अपनी ही बुराइयों का शमन कर सकता है, वह जग जीत सकता है। अपनी कमजोरियों को जीतना मतलब जग को जीतने की तैयारी करना।

अधिकांश व्यक्ति इससे अनभिज्ञ रहते हैं एवं जीवन भर भी दूसरों की बुराई और दुर्गुणों को देखने में बिताते हैं। तो आज से आत्ममंथन को अपने जीवन का एक अभिन्न अंग मानकर उसे अपनी दिनचर्या में शामिल करें फिर देखें अपने में बदलाव।


 

परिश्रम

कहावत है परिश्रमी पर लक्ष्मी सदैव प्रसन्न रहती हैं। यह कहावत उन पर बिल्कुल सटीक बैठती है जो अपने कर्मों से अपने भाग्य की लकीरों को बदल देते हैं क्योंकि उन्हें भरोसा होता है अपने आप पर और अपने कर्मों पर। जो जीवन भर दूसरों की छाया में चुप कर रहना चाहते हैं, दूसरों के आश्रय में जीवन बिताना चाहते हैं वह कभी भी स्वयं की परछाई नहीं देख पाते।

स्वयं की मेहनत से पसीना बहा कर पाया हुआ धन एवं साधन अद्भुत संतोष देते हैं लेकिन उसके लिए धूप में भी पकना पड़ता है, संघर्षों का सामना करना होता है। मेहनत की रोटी में जो सुख है वह दूसरों से प्राप्त धन और सुंदर व्यंजनों में भी नहीं है। मेहनत से कमाने में धूप की चुभन है, कभी दर्द भी है किंतु अंत में सुखद संतोष एवं शांति है।


 

रविवार, 15 नवंबर 2020

शांति का प्रकाश

जब हम किसी देव पुरुष या किसी महापुरुष के व्यक्तित्व को देखते हैं तो सबसे पहले जो दिखता है वह उनके चेहरे पर छाई हुई अनोखी सरलता एवं शांति। उनके चारों ओर फैला हुआ प्रकाश स्वत: ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। उनके व्यक्तित्व का सबसे सुंदर पहलू अगर कोई होता है तो वह है उनके चेहरे पर फैली हुई धैर्य मिश्रित अनोखी शांति।

यही वह ऊर्जा है जो उन्हें सतत प्रकाशमान करती है एवं अनेकों को उनकी ओर एक चुंबक की तरह खींचती भी है। यह ऊर्जा यूं ही नहीं आती अपितु यह अंदर की तप साधना का ही परिणाम है। अतः जिसके अंदर शांति है उसके लिए सारा जग ही सुंदर है।


 

स्व संवाद

अधिकांश मनोवैज्ञानिक समस्याओं की जड़ हमारे मन के अंदर होती है। जब भी किसी मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति को देखते हैं तो यहां यह पाते हैं कि उसकी समस्याओं की जड़ तो उसके अंदर ही है। आज का युग मानसिक समस्याओं का युग है और आज के युग की सबसे बड़ी बीमारी है अवसाद, तनाव क्योंकि आज इंसान अकेला है एवं साधन संपन्न होते हुए भी अपने अहम के कारण एक घर में रहते हुए भी अपनों से कटा हुआ है।

 समस्याओं का प्रकार इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमारा स्वयं से संवाद कैसा है। आज अगर कुछ बिगड़ा हुआ है तो वह हमारा स्वयं से संवाद ही है। हम स्वयं से किस भाषा में बात करते हैं उससे हमारेे पूरेे व्यक्तित्व का निर्माण होता है और उसी से हमारे रिश्तो का भी बनना बिगड़ना होता है। अगर एक सकारात्मक पहल करनी है तो सबसे पहले रोज स्वयं से सकारात्मक संवाद करने की आदत डालनी होगी।


स्वयं से रिश्ता


आज रिश्तो की नींव हिली हुई है, इंसान अकेला है। संयुक्त परिवार टूट गए हैं और जो एकल परिवार भी हैं उनमें भी सामंजस्य नहीं है। परिवार के सदस्यों में प्रेम की भावना कम होती जा रही है क्योंकि कहीं ना कहीं शुरुआत ही गलत है। अगर ध्यान से विश्लेषण किया जाए तो यह देखने में आता है कि वास्तव में इंसान स्वयं से ही परेशान है। उसका स्वयं से ही रिश्ता अच्छा नहीं है इसलिए वह दूसरों से भी एक स्वस्थ और गहरा रिश्ता बना पाने में सक्षम नहीं है इसलिए यह मान सकते हैं कि शुरुआत स्वयं से ही होती है।

स्वयं को समझना रिश्तो को निभाने की पहली सीढ़ी है। देखने में आता है कि जो स्वयं के साथ एक सुंदर रिश्ता रखते हैं हमें दूसरों के साथ भी बड़ी सरलता से जुड़ जाते हैं। तो पहले खुद से दोस्ती कीजिए फिर देखिए रिश्ते कैसे सुंदर बनते हैं।

शनिवार, 7 नवंबर 2020

संवाद का जादू

संवाद जीवन में जादू करने वाला एक सशक्त शब्द है। हर व्यक्ति जानता है कि जीवन में इसका क्या महत्व है। नौकरी में सफलता से लेकर सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में हर जगह इसका बहुत ऊंचा स्थान है किंतु हर कोई इस कला को नहीं जानता। बात चाहे सामाजिक संबंधों की हो, अपने अधीनस्थों से संबंध की हो या फिर अपने प्रियजनों से संबंधों की हो, हर जगह एक मजबूत संवाद मजबूत डोर का कार्य करता है जो आपस में व्यक्तियों को बांधे रखता है।

संवाद ऐसा हो जिसमें सार तो समाया हुआ ही हो किंतु मधुरता के साथ-साथ स्पष्टता भी हो। यदि स्पष्ट एवं सुंदर संवाद की कला आ गई तो जीवन स्वर्ग सम हो जाता है । हर रिश्ते की पहली नीव है आत्मिक संवाद मतलब दिल से निकले वह सच्चे शब्द जो ना केवल आप को स्पर्श करें किंतु कम शब्दों में सीख भी दे जाएं।


 

सफलता की उड़ान

सफलता आज के समय में कौन नहीं चाहता। आज हर कोई नाम शोहरत और और धन चाहता है। इस सफलता के लिए हर व्यक्ति अपनी ओर से पूरा प्रयास करता है हर तरह की कलाएं और गुण सीखता है, अपने व्यक्तित्व के ऊपर कार्य करता है किंतु जब उसे सफलता मिल जाती है तो वह अपनी जमीन और अपनी मिट्टी से मुंह मोड़ लेता है। वह अपने संघर्ष को तो याद रखता है लेकिन अपने से नीचे जो लोग हैं उनका दमन शुरू कर देता है।

सफलता के नशे में वह यह भूल जाता है कि पक्षी चाहे कितनी भी ऊंची उड़ान क्यों ना भरे अंततः उसे जमीन पर पांव रखना ही है। अपनी जड़ों को छोड़कर कोई भी जीवित नहीं रह सकता। कहीं ना कहीं उसके अंदर अधूरापन रह जाता है इसलिए सदैव संतुलित एवं अनुशासित रहे।


 

भाग्य निर्माण

शब्दों की शक्ति अपार है | विचारों से शब्दों का निर्माण होता है एवं हमारे शब्द ही हमारे कर्मों में उतरकर हमारा भाग्य बनाते हैं। किसी से बात करते समय कैसे शब्द चुनना है यह बहुत समझदारी का विषय है। कई बार केवल शब्दों के प्रयोग से बनती हुई बात बिगड़ जाती है या बिगड़ी हुई बात बन जाती है। साथ ही साथ शब्दों की भी अपनी शक्ति होती है, अपनी तरंगे होती हैं।

शब्दों के प्रयोग के समय केवल वाणी का ही उपयोग नहीं कर रहा होता है किंतु भावों का भी समावेश करना होता है। कई बार वह भाव बिना कहे ही गजब का प्रभाव छोडते हैं। कहते भी हैं दिल से कही गई बात सदैव सफल होती है इसलिए शब्दों का चुनाव सोचकर करें।


 

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

चरित्र निर्माण

 बड़ी विचित्र बात है क्या आपने कभी यह सोचा है कि जब आप किसी से मिल रहे होते हैं तो इससे आपका चरित्र भी प्रगट होता है। वास्तव में हमारे तौर तरीके, हमारा व्यवहार और दूसरों से हमारा मिलने का तरीका हमारे चारित्रिक गुणों और आदतों को ही प्रकट करता है। कितनी गहरी बात है यह किंतु बहुत कम लोग से समझते हैं।

एक पारखी पहली बार में ही व्यक्ति के मिलने के तरीके से उसके चरित्र का बहुत कुछ अनुमान लगा लेता है। चाहे आप कितना ही क्यों ना छुपाए आपका मूल चरित्र आपके व्यवहार से परिलक्षित हो ही जाता है। तो आगे से जब आप किसी से मिले तो ना केवल उसे पारखी नजरों से देखें बल्कि गहराई से अपने व्यवहार पर भी नजर डालें कि वह आप के किन गुणों को प्रकट कर रहा है। 


 

प्रेम एक झलक

प्रेम के ऊपर जितना भी लिखा जाए वह कम है। बड़े बड़े महान कवियों की कलम से प्यार की बड़ी-बड़ी बातें लिखी गई हैं कुछ कविताओं के माध्यम से तो कुछ कहानियों के। प्रेम सदियों से चर्चा का विषय रहा है किंतु सच्चा प्रेम वह है जो स्वार्थ रहित हो । स्वार्थ रहित प्रेम में स्वीकार्यता बहुत अधिक होती है एवं वह सामने वाले व्यक्ति को कमजोर बनाने की वजह और भी ताकतवर बनाता है।

 प्रेम की शक्ति अनंत है। सच्चा प्रेम बुझे हुए मन में भी आशा के दीपक जलाता है और एक प्यासे के लिए वह किसी जल की धारा की समान शीतल एवं तृप्त करने वाला होता है। सदा ध्यान रहे प्रेम कभी भी आपको कमजोर नहीं बल्कि शक्तिशाली एवं आत्म बल से संपन्न बनाता है।


 

आचरण का महत्व

अनेकों व्यक्तियों का स्वभाव बड़ा ही व्यंग्यात्मक होता है। वह किसी से भी सीधे मुंह बात नहीं करते और सदा ही तंज कसते कसते रहते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ कोई भी अच्छा और आरामदायक महसूस नहीं करता। वास्तव में जो व्यक्ति व्यंग करते रहते हैं उनमें आत्म बल की कमी होती है। वह स्वयं तो कुछ कर नहीं पाते अतः अपनी इस कमी को वह व्यंग करके पूरा करते हैं।

यह उनकी चारित्रिक कमजोरी को भी प्रकट करता है। वास्तव में जो आत्मबल से संपन्न एवं मानसिक रूप से शक्तिशाली है उन्हें कभी भी व्यर्थ बोलने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। उनकी संकल्प शक्ति से ही सारे कार्य संपन्न हो जाते हैं।


 

रविवार, 25 अक्टूबर 2020

सुनने की कला

जैसे बोलने की कला अपने आप में एक महत्वपूर्ण कला है वैसे ही एक अच्छा श्रोता बनना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। अधिकतर लोग इससे अनभिज्ञ रहते हैं कि अच्छे रिश्ते की नींव एक अच्छा श्रोता बनना होता है। जितना अधिक हम दूसरों को ध्यान से और गहराई पूर्वक सुनते हैं उतना ही हमारा रिश्तो में अनुभव बढ़ता जाता है एवं हम लोगों को समझ पाते हैं। इससे हमारी परखने की शक्ति भी मजबूत होती है जिससे भविष्य में भी हम अपने रिश्तो की नींव को कमजोर नहीं होने देते। 
अधिकतर लोग इसको ना समझते हुए केवल इसलिए सुनते हैं कि उन्हें सुनी हुई बात का जवाब देना है। वास्तव में हर मनुष्य में इस बात की भूख है कि कोई उसे सुनी एवं समझे। यदि हम लोगों को सुनना सीख गए तो रिश्तो की उलझन में हम आधा तो जीत ही जाते हैं।

 

आत्मसुधार

बात है बड़ी छोटी किंतु बहुत ही महत्वपूर्ण जो वास्तव में हम जानते ही नहीं। जितना अधिक हम लोगों के अवगुणों को देखते हैं उनमें खामियां निकालते हैं धीरे धीरे वह अवगुण हमारे में भी प्रवेश कर जाते हैं। कोई भी इस बात पर आपत्ति कर सकता है कि ऐसा कैसे हो सकता है किंतु है यह सत्य। कहते हैं हमारे आसपास की सृष्टि हमारे संकल्प और विचारों से ही बनती है।

यदि हम दिन भर व्यर्थ विचारों में गोता लगाते रहेंगे एवं हर ओर खामियां ही देखते रहेंगे तो यह हमारी दृष्टि ही बन जाएगी। एक बार आदत में शामिल होने पर धीरे धीरे यह अवगुण हमारे में भी प्रवेश कर जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता। अतः दूसरे के अवगुणों को धारण ना करने के लिए सबसे अच्छा उपाय है उनके अवगुणों को ना देखना।


 

शनिवार, 24 अक्टूबर 2020

शब्द शक्ति

कहते हैं शब्दों की गरिमा रखना हर किसी के बस की बात नहीं होती। शब्दों की शक्ति का एहसास बहुत कम लोगों को होता है। कुछ उन्ही शब्दों से अपने जीवन में सब कुछ नष्ट कर लेते हैं और कुछ उन शब्दों के जादू से लोगों को मोहित कर लेते हैं किंतु अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि शब्द भी सीमित और शक्तिशाली होने चाहिए। जिन्हें अपनी शक्ति प्रिय होती है वह बहुत सोच समझकर गंभीरता से बोलते हैं अतः उनके शब्दों में गहराई एवं अर्थ होता है।

जो यूं ही बोलते रहते हैं वे अपनी संकल्प शक्ति को व्यर्थ गँवाते हैं और इसी कारण उनके शब्दों में भी प्रभाव नहीं रह जाता अतः उन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता। अतः कम बोले लेकिन अर्थपूर्ण और गहराई लिए हुए बोले तब देखें कैसे आपके शब्द फलित होते हैं।


 

सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

आत्मबल

आपका आत्मबल वह अनोखा गुण है जो परमात्मा ने एक रत्न की तरह तराशकर हर व्यक्ति में डाला है। विषम परिस्थितियों में जब हर ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है तब कहीं से उम्मीद की एक रोशनी का साक्षात्कार होता है जो कहीं और से नहीं हमारे अंदर से ही अवतरित होती है। आत्मिक साहस वह महान गुण हैं जिसे परमात्मा ने सभी में पूरे मन से भरा है।

ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब असंभव की दिखती हुई परिस्थितियों में कई अनोखे कार्य हुए हैं जो और किसी बल पर नहीं बल्कि आत्म बल के भरोसे हुए हैं । वास्तव में वही बलवान है जिसने आत्मबल का महान भंडार अपने अंदर सुरक्षित रखा है। यह वह धन है जो आपसे कोई चोर नहीं चोरी कर सकता ना कोई आपसे छीन सकता है। इसे बनाए रखें, यही हर स्थिति में आपका परम मित्र है।



 

मुस्कान

मुस्कान वास्तव में ऐसा गुण है जो जीवित प्राणियों में भगवान ने केवल मनुष्य में ही डाला है। जब मन उदास हो, हताश हो और हारा हुआ महसूस करता हो तब एक नन्हे बच्चे की अबोध मुस्कान या एक पालतू की सुंदर अठखेलियां मन को शांति और हर्ष से भर देती हैं। मुस्कान देने में एक पैसा भी खर्च नहीं होता किंतु यह सभी में ऊर्जा का संचार कर देती है। एक अबोध मुस्कान जीवन जीने की इच्छा बढ़ा देती है। अतः सदा मुस्कुराए, इसे खर्च करने में कंजूसी ना करें।

आपकी मुस्कान दूसरों में ही नहीं स्वयं आप में भी सकारात्मक परिवर्तन कर देती है जिससे आप मानसिक एवं शारीरिक रूप से बहुत हल्का और खुशनुमा महसूस करते हैं। तो सदा मुस्कुराइए और परमात्मा के दिए हुए इस अकूत खजाने को बांटिये। 


 

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

आत्म सुधार

एक प्रसिद्ध कहावत है जब जागो तभी सवेरा। हमारे जीवन में रोज सूर्योदय होता है एवं दिन ढलने के साथ सूर्यास्त भी। हर नया सवेरा नई उम्मीदों की किरणों को लेकर आता है एवं हर डूबता हुआ दिन आशा निराशा के झूले में झूल आता हुआ हमें नींद की ओर ले जाता है। सही सकारात्मकता एवं निश्चय बनाए रखते हुए हमें सबसे अधिक आत्म विश्लेषण की आवश्यकता है।
 वास्तव में वही सच्चा मालिक है जिसने जग नहीं अपने आप को जीत लिया है क्योंकि व्यक्ति यदि किसी से हारता है तो वहां किसी और नहीं स्वयं से है। वह अपने ही दुर्गुणों और कमजोरियों पर काबू नहीं पा पाता और जीवन में पिछड़ता ही जाता है अतः जिस दिन हमने आत्म सुधार की दिशा में कदम बढ़ाया वही सच्चा सवेरा है।

 

आत्मबल

किसी भी कार्य में श्रेय लूटना जैसे आज इस युग की परिपाटी सी है। जितना ध्यान व्यक्ति कार्य की उत्कृष्टता पर नहीं देता उतना वह इस पर ध्यान केंद्रित करता है कि कैसे वह उस कार्य का श्रेय लूट सके। जिससे वह व्यक्ति सबसे अधिक निराश होता है जिसने वास्तव में उस कार्य को अंजाम दिया है किंतु दूसरों के द्वारा उसका श्रेय ले लेने से उसकी प्रेरणा एवं प्रोत्साहन कम होता है।

ऐसा भी समय आता है जब एक उत्कृष्ट कार्य करने वाला व्यक्ति भी हताशा के वश होकर कार्य करना ही छोड़ देता है किंतु अपने आप पर भरोसा रखना और अपना कार्य जारी रखना इस मुश्किल क्षण में सबसे बड़ी परीक्षा है। ऐसे समय में जिसने अपने आत्मबल की शक्ति को बनाए रखा वह जग जीत सकता है।


 

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2020

व्यवहार कुशलता


 अक्सर संबंधों में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी होती है एक दूसरे को गहराई से समझना एवं भावनात्मक संबल देना। सबसे शक्तिशाली से शक्तिशाली व्यक्ति भी भावनात्मक स्तर पर यदि अपने आप को भरा पूरा महसूस नहीं करता है तो यह आंतरिक खालीपन उसको आत्मिक रूप से शक्तिशाली नहीं बनने देता। वास्तव में हर व्यक्ति की यही इच्छा होती है कि भले वह प्रगट ना करें किंतु कोई उसे अंदर से समझे एवं उसकी भावनाओं को पोषित करें।

लोगों को पढ़ना भी एक कला है किंतु इस कला का उपयोग केवल किसी निष्कर्ष निकालने के लिए नहीं बल्कि उन्हें अंदर से शक्ति एवं साहस देने के लिए होना चाहिए। आत्मबल को बढ़ाने वाला तो इस युग में सबसे बड़ा मित्र है। लोगों को पढ़ना अगर एक कला है तो यह कला लंबे काल के अभ्यास के बाद विकसित होती है। इस ज्ञान के आगे बड़ी-बड़ी पुस्तकों एवं ग्रंथों का ज्ञान भी छोटा पड़ जाता है।

मंगलवार, 13 अक्टूबर 2020

साहस

आज के इस तनाव भरे समय में हर कोई अपना आत्म बल जैसे खोने लगा है एवं मानसिक शांति के लिए भटक रहा है। आज व्यक्ति के पास धन – संपदा, पद ,प्रतिष्ठा सभी कुछ है और आज से अधिक विलासिता एवं वैभव पहले मनुष्य के पास नहीं था। साधनों की कोई कमी नहीं होते हुए भी आज मनुष्य सबसे अधिक खाली हैं, अंतर्मन से हारा हुआ है अतः ऐसे समय में उस व्यक्ति का मूल्य तो सबसे अधिक हो जाता है जो मानव के मन में साहस एवं आत्मबल का संचार करें।

वास्तव में मानव के हृदय में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाना एवं मन से हारे हुए व्यक्ति को उठ के खड़े होने के लिए प्रेरित करना सबसे बड़ा महान कार्य है। आज व्यक्ति को भौतिक साधनों से अधिक मानसिक शक्ति एवं आत्मबल की आवश्यकता है। जो यह कर सके वह परमात्मा का सच्चा बच्चा है।



 

सोमवार, 12 अक्टूबर 2020

शब्द शक्ति

क्या आपको स्मरण है की शब्द भी एक शक्ति है और उसकी ऊर्जा को बचाना भी उतना ही जरूरी है। अक्सर यह देखा गया है कि अधिक एवं व्यर्थ बोलने वालों को कोई भी सुनना पसंद नहीं करता एवं बातचीत में उनकी वक्तव्य की गरिमा भी कोई नहीं रखता। उनकी वाणी का वास्तव में कोई मोल नहीं होता। दूसरी ओर जो व्यक्ति कम किंतु सधे हुए शब्दों में अपनी बात को रखता है उसकी बात का ना केवल मूल्य होता है बल्कि सभी उसका समुचित सम्मान भी करते हैं।

 कहने का तात्पर्य यह है कि अधिक बोलने या ऊंचा बोलने से आपकी बात की गरिमा एवं गहराई कम ही होती है ना की बढ़ती है अतः कम से कम शब्दों में किंतु तार्किक रूप से जब हम अपनी बात को प्रस्तुत करते हैं तो उसका वजन बढ़ जाता है। तो आगे से हमें अपनी बात को सधे हुए शब्दों में रखने के लिए सबसे पहले अपनी शब्दावली को सुधारना होगा।


 

रविवार, 11 अक्टूबर 2020

सम्बंध की गहराई

आज के युग में संबंधों की गरिमा ताक पर है। संबंध बनाना जितना सरल है, उतना ही कठिन है उसे निभाना क्योंकि आपसी संबंधों को मजबूती देने के लिए ना केवल एक दूसरे को समझना जरूरी होता है बल्कि दूसरे व्यक्ति के अनुसार ढलना भी होता है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि व्यक्ति कितना समय किसी संबंध में देता है बल्कि यह महत्वपूर्ण है कि वह कितनी समझदारी और प्रेम के साथ उस संबंध को निभाता है।

भावनाओं की शुद्धि एवं हृदय से तार जोड़ना ही किसी संबंध की गहराई को मापने का तरीका है एवं यही संबंधों को निभाने का आधार है। आज के इस आभासी और दिखावटी युग में संबंधों के आधार ही खोखले हैं जो प्रारंभिक रूप से दिखावे पर आधारित है अतः यह जानना और समझना आवश्यक है की संबंधों की गहराई हृदय से जुड़ी हैं ना कि बाह्य रूप और दिखावे से।


 

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

मीठे बोलो का महत्व

मीठे बोल का महत्व कौन नहीं जानता ? बिगड़ते हुए कार्य प्रेम मिश्रित बोलो से बन जाते हैं, परिवार में पड़ी दरारें भावना के साथ बोले गए मीठे वचनों से पट जाती है। जो इनके महत्व को नहीं जानते वह शायद इन्हें बड़ा छोटा समझते हैं। जिन्हें प्रेम की बोली बोलना नहीं आता एवं सदा अधिकारपूर्वक हठ से कार्य कराना जानते हैं वह यही सोचते हैं कि इन मीठे बोलो का आखिर क्या महत्व ? किंतु अधिकार से व्यक्ति अपनों को खोता है एवं प्रेम से जीतता है।

अतः लंबे समय में जब प्रेम के बोल का प्रभाव देखने में आता है तो यही महसूस होता है कि इनका दायरा वास्तव में बहुत बड़ा है और इनकी गूंज अत्यधिक प्रभावी|  तो यदि अपनी जीवन और अपने आसपास के वातावरण में कोई स्थाई परिवर्तन देखना हो तो मीठी वाणी के चमत्कारों को खुद आजमा कर देखें।


 

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

मानवीय साहस

जब भी साहस के धनी एवं अभूतपूर्व कार्य करने वालों की चर्चा होती है तो उन लोगों का नाम जबान पर आता है जिन्होंने मुश्किलों से हार कर कभी पीछे मुड़ना स्वीकार नहीं किया, जिन्होंने अपने सपनों की उड़ान को किसी भी परिस्थिति में बाधित नहीं होने दिया, जिन्होंने परिस्थितियों से डरकर कभी हार नहीं मानी। अगर उन्होंने भी सामान्य व्यक्तियों के जैसे विषमताओं से डरकर अपने साहस को खो दिया होता तो शायद आज मानवता की गरिमा को बढ़ाने वाले इतने अविष्कार कभी नहीं होते।

 अगर युग और काल के हाथों से आहत होकर मानवता को चोट पहुंची तो उसे मरहम लगाने वाले भी कई व्यक्ति हुए जिन्होंने इतने दुष्कर कार्य केवल अपने साहस और आत्मबल के बूते पर किए। सच ही तो है - सीमाएं उन्हीं के लिए बनी है जो हारना जानते हैं, जो उड़ान भरने के पहले ही डर कर अपने आप को सीमाओं में बांध लेते हैं।


आचरण की महानता

 आपका आचरण ही आपका जीता जागता प्रतिरूप हैजब जब किसी महान व्यक्ति या महापुरुष की चर्चा होती है तो सबसे पहले दृष्टि में आता है - उनका आचरण, उनका चरित्र। यह चरित्र ही वास्तव में हर व्यक्ति की सबसे बड़ी पूंजी है जिसे आज के समय में दरकिनार कर दिया गया है। यह मान लिया गया है कि यदि धन, पद और प्रतिष्ठा है तो चरित्र का ज्यादा महत्व नहीं है किंतु वास्तव में अनंत काल के लिए वही याद किया जाता है जिसने अपनी वाणी से नहीं अपितु अपने कर्मों से उदाहरण पेश किया।

वाणी का जादू बहुत समय तक अपना काम नहीं करता क्योंकि उसकी पोल खुल ही जाती है। शीर्ष पर तो आपका कर्तृत्व एवं चरित्र ही होता है इसलिए अपने आचरण में सदाचार और गुणों की जितनी वृद्धि की जा सके उतना ही अच्छा है। वास्तव में आपके जाने के बाद भी अगर कुछ याद किया जाता है तो वह है आपके कर्म और आपका चरित्र।


 

बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

परिश्रम का महत्व

 

 

आज का समय सुविधा और साधनों का हैआज से पहले तक मनुष्य के पास इतनी सुविधाएं कभी भी नहीं थी किंतु आज से पहले मानसिक तनाव भी इतना कभी नहीं थाआज मनुष्य सब कुछ पाना चाहता है किंतु भौतिकता के मकड़जाल में उलझकर सुविधा से युक्त तो हो जाता है किंतु मानसिक रूप से रिक्त हो जाता है, अंदर की भरपूरता कहीं समाप्त हो जाती है।

वास्तव में जीवन से संघर्ष की समाप्ति, अंदर जीवन जीने की इच्छा को समाप्त करता है क्योंकि बिना कुछ किए सब कुछ पा जाने से जैसे जीवन का रंग ही खत्म हो जाता है, उसकी महक तो वास्तव में कड़े परिश्रम से प्राप्त होने वाले फल में ही है। अतः जीवन में थोड़ा रंग संघर्ष और कठिनाइयों का भी भरना चाहिए तभी जीवन का कैनवास रंग बिरंगा होगा।

रविवार, 20 सितंबर 2020

वाणी की शक्ति

हमारी जीभ को ईश्वर से एक अद्भुत वरदान मिला है- वाणी का। वाणी की शक्ति अपने आप में ऐसी अनुपम शक्ति है जिसकी ऊर्जा से समय-समय पर पूरा संसार आंदोलित हुआ है। कभी यह वाणी सिद्ध पुरुषों की थी तो कभी यह कालजयी रचनाकारों की,कभी कवियों की, तो कभी विश्व प्रसिद्ध नायकों की जिन्होंने अपनी सफल नेतृत्व से एक राष्ट्र का भाग्य बदल दिया। अब तो वाणी की शक्ति का परिचय आपको हो ही गया होगा। पर वास्तव में हममें से अधिकांश लोग इसी शक्ति का बिना जो सोचे समझे सबसे अधिक दुरुपयोग करते हैं। 
मुंह से निकले हुए शब्द किसी के भाग्य का निर्माण भी कर सकते हैं तो किसी के भाग्य के सितारे को सदा के लिए अस्त भी कर सकते हैं। इनमें निहित ऊर्जा को बहुत सोच समझकर उपयोग करना चाहिए। व्यर्थ बोलने से ना केवल शारीरिक शक्ति खर्च होती है किंतु मानसिक शक्तियों का भंडार भी  खाली होता है। तो जब भी बोले - समय देखकर,सोच समझ कर बोलें।


 

संकल्प की ऊर्जा

संकल्प अर्थात हम से निकलने वाली निरंतर बहने वाली ऊर्जा की धारा जो विचारों के रूप में लगातार हम से प्रसारित होती रहती है। वास्तव में इस जगत में आने के बाद हम चलना - फिरना, खाना - पीना, उठना - बैठना पढ़ना इत्यादि सीखते हैं किंतु दुर्भाग्य से यह कोई नहीं जानता कि जैसे सोचना है। विचारों की शक्ति अद्भुत है किंतु इसी शक्ति को हम सबसे अधिक नजरअंदाज करते हैं एवं उसका दुरुपयोग स्वयं ही अपने विरुद्ध करते हैं। सुनने में यह बड़ा अजीब लगता है किंतु है बिल्कुल सत्य।
 हमसे निकलने वाला हर विचार अपने आप में ऊर्जा का भंडार होता है। हर संकल्प की एक आवृत्ति होती है। जितना शक्तिशाली संकल्प, उतनी ही शक्तिशाली उसकी आवृत्ति होती है, चाहे वह संकल्प सकारात्मक हो या नकारात्मक। इससे ही पता चलता है कि हमारे सोचने के तरीके से हम, अपने आसपास किस तरह का वातावरण निर्मित करते हैं और अपने जीवन को कैसी दिशा देते हैं। तो अब जब भी सोचे संभल कर सोचे।


 

बड़प्पन की गरिमा


किसी भी व्यक्ति का बड़प्पन उसके चरित्र और उसके गुणों से झलकता है ना कि उसके पद अथवा नाम से। अधिकांशतः इस संसार में लोग अपने पद और प्रतिष्ठा के बल पर अपने अधीन व्यक्तियों को दबाते हैं एवं अपना  महत्व दर्शाते हैं किंतु एक बात याद रखना है कि ऐसा प्रभुत्व बहुत लंबा नहीं चलता। दबाव में आकर शायद उस समय तो वह व्यक्ति आप का प्रभुत्व स्वीकार कर ले किंतु आप उसके हृदय में कभी स्थान नहीं बना पाएंगे। 
इतिहास गवाह है कि वही व्यक्ति महापुरुष कहलाए जिन्होंने अपने पद एवं प्रतिष्ठा के बल पर नहीं बल्कि अपने आचरण से लोगों को मजबूर किया कि वह स्वयं ही उनका गुणगान करें।अगर बड़ा बनना ही है तो क्यों ना गुणों की खान बने जिससे स्वयं ही लोग आपके आगे नतमस्तक हो और आपकी बड़प्पन को नमस्कार करें।

 

शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

संकल्प - जीवन का आधार



 
हमारे संकल्प अर्थात ऊर्जा से पूर्ण हमारे विचार। इस जगत में कुछ भी घटने के पहले इस ऊर्जा का निर्माण हमारे मन में होता है जो आगे चलकर भौतिक रूप से प्रगट होता है। आश्चर्य की बात है कि हम कभी यह समझ ही नहीं पाए की संकल्प की शक्ति कितनी महत्वपूर्ण है। जैसे संकल्प हम करते हैं वैसे ही ऊर्जा को हम ब्रह्मांड से अपनी और आकर्षित करते हैं और वैसे ही भाग्य का निर्माण हम करते हैं। अर्थात हमारे आसपास का वातावरण हमारे ही संकल्पों की देन है जिसे हम जानते ही नहीं हैं। 
हमारे संकल्प उस उर्जा का एक महत्वपूर्ण भाग है जो हमारे जीवन को गढ़ती है। एक सुखद भविष्य और एक सुंदर जीवन को आकर्षित करने के लिए यह जानना जरूरी है कि संकल्पों में नकारात्मकता अथवा कमजोरी हमारे जीवन को भी दुख से भर सकती है। अतः  अपने आसपास के वातावरण के रचनाकार हम स्वयं ही हैं और उसकी रचना श्रेष्ठ संकल्पों के आधार पर होती है।

सम्मान

सम्मान उस निवेश की तरह है जो हमें वैसे ही वापस मिलता है जैसे हमने दूसरों को दिया था। जितना सम्मान अथवा अपमान हम दूसरों का करते हैं वह सारे का सारा ब्याज सहित हमें वापस मिल जाता है।यह वह ऊर्जा है जो देने पर कई गुना होकर हम तक वापस आती है। बिना दूसरों को आदर अथवा सम्मान दिए हम उनके हृदय में भी स्थान नहीं बना सकते। 
बहुत से ऊंचाइयों पर पहुंचे हुए बड़े व्यक्ति अहंकारवश अपने नीचे काम करने वाले लोगों को तुच्छ समझते हैं एवं अहंकार  के वश होकर उन्हें कभी सम्मान नहीं देते। किंतु वह भूल जाते हैं कि जो ऊर्जा उन्होंने उन्हें स्थानांतरित की वही समय के साथ उसी रूप में वापस उन तक आती है। यह विनिमय प्रकृति का नियम है। तो अगर सबके हृदय में विराजना है तो सम्मान लेने के पहले देना सीखना होगा।
 

प्रशंसा की शक्ति

प्रशंसा एक दो धारी तलवार की तरह होती है। इसका स्वाद जो ना चखे वह उसके लिए तरसता है किंतु जो उसे चख लेता है वह अति उत्साहित होकर खुशी में आत्ममुग्ध सा हो जाता है। पुरानी कहावतो में कहा भी गया है कि अपने निंदक को हमेशा अपने पास रखना चाहिए क्योंकि वह हमें सदा अपनी बुराइयों से परिचित कराता रहता है एवं आत्ममुग्ध होने से बचाता है। 

बड़े-बड़े महात्मा और महापुरुष भी काल के चक्र में पड़कर किसी समय विशेष पर प्रशंसा पाकर अभिमानी हो गए और अपने गुणों की तिलांजलि दे दी।प्रशंसा पाकर अक्सर बड़े-बड़े प्रभावशाली व्यक्तित्व के महापुरुष भी चाटूकारों के प्रभाव में आ जाते हैं एवं सच्चे मित्रों को खो देते हैं| अतः यह सत्य है कि प्रशंसा पाने में तो बड़ी अच्छी लगती है किंतु उसका भार उठाना अच्छे अच्छों को भारी पड़ता है।


 

गुरुवार, 17 सितंबर 2020

लक्ष्य की महानता

लक्ष्य निर्धारण हर व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल होता है। उसका सारा जीवन इसी पर निर्भर करता है कि वह अपने लक्ष्य को कितनी समझदारी और सुंदरता से निर्धारित करता है। लक्ष्यहीन मनुष्य जंगल में भटकते हुए उस राहगीर के समान है जिसे अपनी मंजिल नहीं मालूम होती। लक्ष्य को साधने के पहले आवश्यक है उसको निर्धारित करना। लक्ष्य को निर्धारित करने में सबसे पहला कदम है अपने दिल की आवाज को सुनना और फिर सही दिशा में सही मार्गदर्शन के साथ आगे बढ़ना।
यदि हमें अपने लक्ष्य का कोई स्पष्ट अनुमान नहीं होता तो सिवाय भटकन के जीवन में और कुछ प्राप्त नहीं होता। ऐसा मनुष्य जीवन भर दूसरे के लक्ष्यों के लिए अपना अमूल्य समय नष्ट करता है।  अतः जीवन को सच्चे अर्थों में जीना है तो सबसे पहले अपना लक्ष्य निर्धारण करना होगा।

 

ख़ुशी की खुराक

आज का समय जैसे बड़ा ही निराशाजनक समय है जब लोग अपने घरों में बंद है एवं एक दूसरे से ना तो संपर्क कर पा रहे हैं और ना ही एक साधारण जीवन जी पा...